भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओ बसंती पवन पागल / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:16, 30 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ओ बसंती पवन पागल, ना जा रे ना जा, रोको कोई
ओ बसंती ...
बन के पत्थर हम पड़े थे, सूनी सूनी राह में
जी उठे हम जब से तेरी, बाँह आई बाँह में
बह उठे नैनों के काजल, ना जा रे ना जा, रोको कोई
ओ बसंती ...
याद कर तूने कहा था, प्यार से संसार है
हम जो हारे दिल की बाज़ी, ये तेरी ही हार है
सुन ये क्या कहती है पायल, ना जा रे ना जा, रोको कोई
ओ बसंती ...