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दुनिया के बारे में / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

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मैं किसी के बारे में कुछ नहीं कह सकता
दुनिया अच्छी है या बुरी कि लोग अच्छे हैं या बुरे
लोग झूठे वादों के साथ चलने का वादा करते
बहुत साथ छोड़ जाते, उन्हें बहुत काम होते
कुछ लोग साथ चल कर
कमज़ोर लम्हों में ठहर जाएँगे
वो साथ चले जितना भी चले
कुछ लोग धीरे धीरे कोशिश करेंगे
साथ छोड़ कर फिर साथ आ जाएँगे
न जाने कितने लोगों को हैरान करेंगे
कई लोग देखना चाहेंगे कितना दम है
तुम्हारी परीक्षा लेगे लेकिन साथ नहीं चलेंगे
दुनिया से अलग चलने की सज़ा देंगे
वे दमखम देखेंगे और कहेंगे -- जाओ
कई लोग दुनिया के धूल औ’ गुबार में साथ होंगे
वे कहीं भी साथ नहीं दिखेंगे
लेकिन वो काफ़िले में कहीं न कहीं साथ होंगे
दुनिया के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता