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कुछ दिन और मैं / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
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मैंने दिनों को स्ट्रीट लाइट
बना कर टाँग दिया
अपना हर दिन जो प्यार से रंगा था
आज शहर में हर तरफ़ हैं
मेरे दिन जो नीले लाल थे
आज मुझ से कितने दूर हैं
मेरे दिन चमक रहे हैं लाइटों में
दुकानों सड़कों और हर लड़की के चश्मे पर
सारा शहर गुज़र रहा है
कार के काँच पर जैसे बदलते हैं दृश्य
मेरे दिनों में चमक रहा है प्यार
बरस रहा है मुस्कुराते शहर पर
मैंने अपने दिन छोड़ दिए हैं
मेरे दिन प्यार कर रहे हैं
मैं अकेला हूं अपने दिनों के बिना
मैं खड़ा हूँ अपने ही दिनों के प्यार में