Last modified on 6 जनवरी 2014, at 02:43

मौन / लीना मल्होत्रा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:43, 6 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीना मल्होत्रा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वो सब बाते अनकही रह गई है
जो मै तुमसे और तुम मुझसे कहना चाहती थी
हम भूल गए थे
जब आँखे बात करती है
शब्द सहम कर खड़े रहते है
रात की छलनी से छन के निकले थे जो पल
वे सब मौन ही थे
उन भटकी हुई दिशाओ में
तुम्हारे मुस्कराहटो से भरी नज़रो ने जो चाँदनी की चादर बिछाई थी
अँजुरी भर भर पी लिए थे नेत्रों ने लग्न-मन्त्र
याद है मुझे

अब भी मेरी सुबह जब ख़ुशगवार होती है
मै जानता हूँ ये बेवज़ह नही
तुम अपनी जुदा राह पर
मुझे याद कर रही हो