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चौराहे का विज्ञापन / गलाब सिंह

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(किसान के हाथ में सौ-सौ के नोट, उसकी घरवाली के सिर पर फसल का गट्ठर)

सिर पर पकी फसल का गट्ठर
बिंदिया दीपित भाल
हाथ हरापन लिए, साथ-
हँस रहे बिहारी लाल।

धरती ने सोना उगला है
आसमान ने बरसे मोती
ये मुँह बोले चित्र कह रहे-
देखो हमें खुशी क्या होती?

खुशियों के आरोपण
चाहे जिसको करें निहाल।

इतनी भरी-पुरी जोड़ी पर
आती-जाती आँख टिक रही
आँचल की नीली छाया में
पीली पगड़ी हरी दिख रही

रंगों के भी क्या कहने
चूनर-से लगते जाल।

खुशहाली का राज खोलता
चौराहे का यह विज्ञापन
सड़कों पर कितना निखरा है
घर के भीतर का अपनापन,

‘देहली’ का देवत्व पूछता-
है कोई कंगाल?