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अपना घर : अपने लोग / गुलाब सिंह
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यही अपने लोग
अपना यही घर है।
झुकी रह कर भी
थमी है,
देखिए, दीवार तक तो
संयमी है,
इनके गिरने का नहीं
उठने का डर है।
दाँत भी थे
अब बचे केवल मसूड़े
बाप पर बेटे गए
बूढ़े ही बूढ़े
पूछना बेकार
किसकी क्या उमर है?
बुझा करके आग
चूल्हे की
नाचती है भीड़
हिलती कमर-कूल्हे-सी
एक पूरी खुशी में
अब क्या कसर है?