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सागर से मेघ / गुलाब सिंह
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सागर से मेघ उठे
सागर से मेघ।
जब-तब मुँह खोल हँसे
कभी हँसे ढाँके,
मन्द हुए चन्दा के
कहकहे ठहाके,
चटक हुए धरती पर
धान के सुलेख।
गढ़ते फरसे-कुदाल
फिर नई कहानी,
जलधर हलधर
किसमें है कितना पानी!
किसके आँगन होंगे
टीके-अभिषेक?
किसका सावन होगा
किसका होगा कुवार?
दूध-भरी बालों का
देख सकेगा सिंगार!
किन बाँहों में होगी
शरद चाँदनी विशेष?