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झीनी चादर / गुलाब सिंह
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झीनी चादर हुए मेघ
कालीन हुए सीवान
क्वार दूध में भीगा
श्वेत हँसी-से फूले धान।
कल हँसिये की धार
गीत की धार बनी गूँजेगी
माँ का आँचल पकड़ प्यार से
फिर पूनम पूछेगी--
सूद-मूल के खेल
कहाँ तक झेलेंगे खलिहान?
फूली कास हिले रूमालों-सी
दे रही विदाई
पावस गई ताल में खोई
सुरधनु की परछाईं
गीली मिट्टी पकी
बरेजों में गदराये पान।
बाँझिन गाय द्वार पर
बैठी-बैठी करे जुगाली,
हरी मिर्च सूखी रोटी पर
हरी-भरी खुशहाली,
गाँव कि जैसे खुले पड़े हैं--
‘कफ़न’ और ‘गोदान’।