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कोई तो बादल सा बरसे / गुलाब सिंह
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कोई तो बादल-सा बरसे
धरती को शीतल कर जाए।
सुख से फूटे
दुख से फूटे
अंकुर कोई फूटे तो,
आँसू-मुस्कानों के क्रम से
अनउर्वरता
टूटे तो,
शब्दों-से दो कोमल पत्ते-
निकलें, सृष्टि कथा कह पाए।
जंगल है या
भीड़ सघन है
फिर भी सूना-सूनापन है
सोने-चाँदी के
पौधों में,
फूल खिलाने का उद्यम है
पर सुगन्ध मिट्टी में पलती
कोई तो मिट्टी तक जाए!
उगता सूरज
बिछी चाँदनी
खिले फूल अब किसे याद हैं,
वत्सल बाँहें
मुक्त हँसी
आत्मीय अपरिचय किसे याद हैं
भूत-भविष्यत से हट कोई
वर्तमान पल तक तो आए!