भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन छुहारा / जेन्नी शबनम

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:58, 13 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जेन्नी शबनम |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> 1. अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
अपनी आत्मा
रोज़-रोज़ कूटती
औरत ढ़ेंकी
पर आस सँजोती
अपनी पूर्णता की !

2.
मन पिंजरा
मुक्ति की आस लगी
उड़ना चाहे
जाए तो कहाँ जाए
दुनिया तड़पाए !

3.
न देख पीछे
सब अपने छूटे
यही रिवाज़
दूरी है कच्ची राह
मन के नाते पक्के !

4.
ज़िन्दगी सख्त
रोज़-रोज़ घिसती
मगर जीती
पथरीली राहों पे
निशान है छोड़ती !

5.
मन छुहारा
ज़ख़्म सह-सह के
बनता सख्त
रो-रो कर हँसना
जीवन का दस्तूर !
 
6.
मन जुड़ाता
गर अपना होता
वो परदेसी
उमर भले बीते
पर आस न टूटे !

7.
लहलहाते
खेत औ खलिहान
हरी धरती
झूम-झूम है गाती
खुशहाली के गीत !

(सितम्बर 10, 2012)