भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई नहीं है / उत्‍तमराव क्षीरसागर

Kavita Kosh से
Uttamrao Kshirsagar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:12, 31 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्‍तमराव क्षीरसागर |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बंद दरवाज़ा
लौटा देता है वापस ,
राह अपनी

थकान, दुनी
हो जाती है जाने से
आने की

रास्‍ता
पहचानने लगा है

हर मोड़ कुछ
सीधा हो जाता है
सहानुभूति‍ में

कभी भूल से साँकल
खटखटाने पर
झूम उठता है ताला
खि‍लखि‍लाकर बताता हुआ,
कोई नहीं है ।
                                     १९९८ ई०