भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ़क़त एक हलचल / उत्तमराव क्षीरसागर
Kavita Kosh से
					Uttamrao Kshirsagar  (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:52, 8 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्तमराव क्षीरसागर |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बसेरा 
फ़क़त एक हलचल  
छोटे - छोटे रास्ते 
दौड - दौडकर 
पहुँच जाते हैं इधर - उधर 
बहुत से क़दमों को 
तय करनी हैं दूरियाँ 
मरघट तक... 
असंभव । 
बोरचिंदी के आते ही 
याद आते हैं ज़रूरी काम 
गौरैया चाहती है 
लोगों के बीच जगह 
कितनी पतली टहनी पर 
लटका हुआ है 
संसार 
                 - 1998 ई0
	
	