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चाँदनी, जंगल, मरुस्थल, भीड़, चौराहे, नदी / योगेन्द्र दत्त शर्मा

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चांदनी, जंगल, मरुस्थल, भीड़, चौराहे, नदी ।
हर कहीं हिरनी बनी भटकी हुई है जिन्दगी ।

टूटने का दर्द तुमको ही नहीं है आइनों,
जिस्म के इस फ्रेम में चटकी हुई है जिन्दगी ।

चुप्पियों के इस शहर में ऊँघती निस्तब्धता
छटपटाहट एक आहट की, हुई है जिन्दगी ।