भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दामन छुड़ा के चल दिए / धीरेन्द्र अस्थाना
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:53, 26 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना }} {{KKCatGhazal}} <poem>उम्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
उम्र भर का गम उठाने की बात करते थे वो कभी ,
दौर-ए-गम शुरू हुआ नही , दामन छुड़ा के चल दिए !
अक्सर मेरे काँधे पे होता था उनका सर और,
जब जरूरत हुयी उनकी , बातें बना के चल दिए !
कभी मेरा तो कभी गैरों का शिकवा करते वो ,
मेरे हाल की कौन सुने , अपने सुना के चल दिए !