भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गैण्डे / स्वप्निल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:28, 27 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इन्हें जंगल में रहना चाहिए
लेकिन ये हमारी दुनिया में
दिखाई दे रहे है
जंगल महकमे के लोग परेशान है
वे बाघ की तरह हमलावर नही हैं
रौंद яरूर देते है
वे स्वभाव से लद्धड़ हैं
मोटी चमडी वाले इन गैण्डों के बारे में
कहा जाता है कि ये गुदगुदाने के
एक हफ़्ते के बाद हँसते हैं
गैण्डों को राजमार्ग की ओर जाते हुए
देखा गया है
यह सियासत के लिए बुरी ख़बर है