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बच्चे / कुँअर रवीन्द्र
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बच्चे,
मुँह-अँधेरे जब सो रहे होते हैं
माँ की छाती / पेट से चिपके
तब वे निकलते हैं
हाँ, वे बच्चे निकलते है
ममियों की तरह सूखे
लत्तों में लिपटे नंगे पाँव
हवेली के पीछे कूड़े में
रात के जश्न की बची
सामग्रियों के ढेर पर
पॉलीथिन के टुकड़े बीनने
और कुछ
अघाएपन की गंध के साथ
अधखाई रोटियों के टुकड़े ढूँढने
तब हवेलियों की छत पर
खाया पचाते
मोटापा कम कर रहा सेठ
उन्हें हिकारत से देखते हुए
दुत्कारता है
जैसे वे बच्चे
उसकी तिजोरी से निकाल रहे हों
हराम की कमाई