अपराधों के ज़िला बुलेटिन
हुए सभी अख़बार
सत्यकथाएँ पढ़ते-सुनते
देश हुआ बीमार ।
पत्रकार की क़लमें अब
फ़ौलादी कहाँ रहीं
अलख जगानेवाली आज
मुनादी कहाँ रही ?
मात कर रहे टी० वी० चैनल
अब मछली बाज़ार ।
फ़िल्मों से, किरकिट से,
नेताओं से हैं आबाद
ताँगेवाले लिख लेते हैं
अब इनके संवाद
सच से क्या ये अन्धे
कर पाएँगे आँखें चार ?
मिशन नहीं गन्दा पेशा यह
करता मालामाल
झटके से गुज़री लड़की को
फिर-फिर करें हलाल
सौ-सौ अपराधों पर भारी
इनका अत्याचार ।
त्याग-तपस्या करने पर
गुमनामी पाओगे
एक करो अपराध
सुर्खियों में छा जाओगे
सूनापन कट जाएगा
बंगला होगा गुलजार ।
पैसे की, सत्ता की
जो दीवानी पीढ़ी है
उसे पता है, कहाँ लगी
संसद की सीढ़ी है
और अपाहिज जनता
उसको मान रही अवतार ।