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अख़बार / बुद्धिनाथ मिश्र

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अपराधों के ज़िला बुलेटिन
हुए सभी अख़बार
सत्यकथाएँ पढ़ते-सुनते
देश हुआ बीमार ।

पत्रकार की क़लमें अब
फ़ौलादी कहाँ रहीं
अलख जगानेवाली आज
मुनादी कहाँ रही ?

मात कर रहे टी० वी० चैनल
अब मछली बाज़ार ।

फ़िल्मों से, किरकिट से,
नेताओं से हैं आबाद
ताँगेवाले लिख लेते हैं
अब इनके संवाद

सच से क्या ये अन्धे
कर पाएँगे आँखें चार ?

मिशन नहीं गन्दा पेशा यह
करता मालामाल
झटके से गुज़री लड़की को
फिर-फिर करें हलाल

सौ-सौ अपराधों पर भारी
इनका अत्याचार ।

त्याग-तपस्या करने पर
गुमनामी पाओगे
एक करो अपराध
सुर्खियों में छा जाओगे

सूनापन कट जाएगा
बंगला होगा गुलजार ।

पैसे की, सत्ता की
जो दीवानी पीढ़ी है
उसे पता है, कहाँ लगी
संसद की सीढ़ी है

और अपाहिज जनता
उसको मान रही अवतार ।