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चरते बादल / बुद्धिनाथ मिश्र

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भरे हुए को भरते बादल
सोचो, यह क्या करते बादल ।
उनके खेत बरसते केवल
उनसे भी क्या डरते बादल ।
किस नदिया के आमन्त्रण पर
बनते और सँवरते बादल ।
हाँक रही है हवा पहाड़ी
बुग्यालों में चरते बादल ।
मोती चुग कर सिंधु-दुर्ग से
पंख पसार उतरते बादल ।
वृन्दावन की बात और है
वैसे, नहीं ठहरते बादल ।
देखो कभी गौर से नभ में
बाने कितने धरते बादल ।