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ज़ुबान / वरवर राव
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ग्रीष्म ऋतु के आते ही
कोकिल
आम्र वॄक्षों में छिपी हुई
वसन्त ऋतु के गीत गाती है । अपने हज़ार पंखों को
खोल कर मोर
जंगल के अंधकार में
सावन को टेरते और नाचते हैं ।
शस्त्रों को छिपाने वाले
शमी वॄक्ष को
शरद ऋतु के बारे में बताता हुआ
नील पक्षी
हमारे सामने आसमान में खो जाता है ।
जंगल में वृक्षों पर पक्षी
चीखते चिल्लाते हुए
घास चरती गाय को
और खेलते-कूदते बच्चों को
आने वाले शेर के बारे में
आगाह करते हैं ।
पानी में मछली को
बिछे हुए काँटों के बारे में
लहरें बताती हैं और
कबूतर को जाल के बारे में
हवा वाकिफ़ कराती है ।
हाथ, पाँव और पेट वाले
बेज़ुबान मनुष्य को
सही ग़लत कौन बताए ।