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तुम गए चितचोर / गोपालदास "नीरज"

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तुम गए चितचोर!

स्वप्न-सज्जित प्यार मेरा
कल्पना का तार मेरा
एक क्षण में मधुर निष्ठुर तुम गए झकझोर।
तुम गए चितचोर!

हाय! जाना ही तुम्हें था
यों रुलाना ही मुझे था
तुम गए प्रिय! पर गए क्यों नहीं हृदय मरोर।
तुम गए चितचोर!

लुट गया सर्वस्व मेरा
नयन में इतना अँधेरा
घोर निशि में भी चमकती है नयन की कोर।
तुम गए चितचोर!