भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रामसिंह / लीना मल्होत्रा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:14, 11 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीना मल्होत्रा |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)
1.
मेरी चीख़ की धार से धरती दो टुकड़ों में बँट गई,
धरती के मेरे टुकड़े पर
तुम्हारे लिए कोई जगह नही है, रामसिंह ।
2.
शुक्र है, रामसिंह
तुम मेरे पड़ोस में नहीं रहते
जहाँ सौंपती हूँ मैं अपने विश्वास की चाबी ।