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युद्ध / लीना मल्होत्रा

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मैं युद्ध के बारे में कुछ नहीं जानती
जब मेरा जन्म हुआ तब युद्ध ख़त्म हो चुका था
माँ बताती थी कि
मेरी बहन जो उस समय दो वर्ष की थी
चिल्ला कर रो पड़ती थी वह
जब
भयंकर गर्जना करते हुए लड़ाकू हवाई जहाज़ हमारी छत के दो हाथ ऊपर से गुज़रते थे
मेरे पिता
कौतुक से अपनी इंजीनियरी दृष्टि से उसके इंजन के तगड़ेपन को तौल रहे होते थे तब
वह नहीं सुन पाते थे उसकी चीख़ें और उसका डर से पड़ा सफ़ेद रंग
यूँ भी
छोटे बच्चे मौत के बारे में कुछ नहीं जानते
वह नहीं डरते अँधेरे से
ख़तरों से या मृत्यु से
मृत्यु को भी वह एक खिलौना समझकर अपने हाथ में उलट-पलट कर देखेंगे
और मरने से पहले मौत का सर अपने दाँतों से चबा डालेंगे
लेकिन बच्चे डर जाते हैं ख़तरनाक आवाज़ों से
युद्ध मेरी बहन के लिए ख़तरनाक आवाज़ था
और माँ की बाहें दिलासा थी
पिता तटस्थ रहे हमेशा दुनिया से
युद्ध और शान्ति में एक सा भाव रहता था उनके चेहरे पर
सिवाय रविवार के जिस दिन उनके घोड़े दौड़ते थे रेसकोर्स में
उस दिन हम उनके सर पर बचे कुछ बालों के बारे में बात करते थे
वह उस दिन हमसे पूछ लेते थे कि पढ़ाई कैसी चल रही है
स्कूल में सज़ा तो नहीं मिलती
हमारे दो कमरों के घर में उनका कमरा अलग था
जिसमें हम उनकी अनुपस्थिति में ही प्रवेश कर सकते थे
यह सिलसिला उनकी मृत्यु के बाद भी बना रहा
उनके अनुपस्थित होने के बाद
अब हम उनके जीवन में प्रवेश करते हैं
जो हमारी स्मृतियों में बसा है हमारे अपराधबोध के वस्त्र पहने

माँ ने उनके और हमारे बीच एक पुल बनाया था
जिस पर घृणा की सीढिय़ाँ चढ़ कर जाना पड़ता था
माँ की मृत्यु के बाद वह सीढिय़ाँ टूट गईं
और मैंने स्वयम् को उस पुल पर खड़े पाया जिसके एक सिरे पर पिता थे
दूसरे पर माँ
तब मैंने ये जाना कि पुल मेरे क़दमों के नीचे नहीं था
बल्कि मेरे क़दम ही थे पुल
जो उनकी तरफ़ बढ़ सकते थे
जब उनकी टाँगे फूल कर पायजामे जितनी मोटी हो गई थी
तब उनके मौन के नीचे एक आशा ने दम तोड़ा था
जब मेरा भाई उन्हें घसीटते हुए अस्पताल ले गया था
क्योंकि वह दुखी था कि उसके पैसे खर्च हो रहे थे
तब भी वह चले गए थे शायद उन्हें अच्छा लगा था कि इस दु:ख के समय उनका हाथ उनके बेटे के हाथ में है

अब मैं अपनी बहन से युद्ध के बारे में बात करती हूँ तो वह कहती है इससे तबाही होगी
हम सब शान्ति से क्यों नहीं रह सकते
उसकी बातों में प्रश्न हैं जिनका उत्तर मेरे पास नहीं है
क्योंकि मैं जानती हूं युद्ध की युद्धभूमि कई बार अदृश्य रहती है
कई बार तो युद्ध भी विराम लगने के बाद पता लगते हैं
शायद पिता इस बारे में बहुत विस्तार से बात कर सकते थे
जीवन का बड़ा वितान पिता से ही मिला
पीड़ा को समेटने का हुनर माँ से
मेरी बहन और मैं कई बार उस पुल पर खड़े रहते हैं हमारे पैर एक दूसरे से उस वक़्त बदले जा सकते हैं
और हृदय भी
कुछ नहीं करना पड़ता उस वक़्त
वह सब सुनने के लिए जिसके शब्द न उनके पास हैं न मेरे पास