भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब आए न मोरे सांवरिया / अमीर खुसरो
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:44, 17 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमीर खुसरो |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अब आए न मोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती।
घर आए न मोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती।
मोहे प्रीत की रीत न भाई सखी, मैं तो बन के दुल्हन पछताई सखी।
होती न अगर दुनिया की शरम मैं तो भेज के पतियाँ बुला लेती।
उन्हें भेज के सखियाँ बुला लेती।