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साहसी / हरिऔध

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 बीज को धूल में मिला कर भी।

जो नहीं धूल में मिला देते।

ऊसरों में कमल खिला देना।

वे हँसी खेल हैं समझ लेते।

धाज्जियाँ उड़ते दहलते जो नहीं।

सिर उतरते किस लिए वे सी करें।

तन नपाते जो सहम पाते नहीं ।

वे भला गरदन नपाते क्यों डरें।

पाजियों को गाल क्यों दें मारने।

सामने दुख फिरकियाँ फिरती रहें।

जिस तरह हो चीर देंगे गाल हम।

चिर गईं तो उँगलियाँ चिरती रहें।

वह बने आस छोड़ बेचारा।

पास जिस के रहा न चारा है।

हार हिम्मत न छोड़ देंगे हम।

नँह नहीं गिर गया हमारा है।

क्या करेगा भाग हिम्मत चाहिए।

हाथ में हित वु+ंजियाँ क्या हैं नहीं।

जो लकीरें हैं लकीरें भाग की।

कब न मूठी में हमारी वे रहीं।

है करमरेख मूठियों में ही।

बेहतरी बाँह के सहारे है।

कर नहीं कौन काम हम सकते।

क्या नहीं हाथ में हमारे है।

साहसी के हाथ में ही सिध्दि है।

लोटता है लाभ पाँवों के तले।

है दिलेरी खेल बायें हाथ का।

हैं खिलौने हाथ के सब हौसले।

जो रहे ताकते पराया मुँह।

तो दुखों से न किस लिए जकड़ें।

क्यों न हों पाँव पर खड़े अपने।

और का पाँव किस लिए पकड़ें।

ठोकरें मार चूर चूर करें।

पथ अगर हो पहाड़ ने घेरा।

क्यों नहीं बेडिगे भरें डग हम।

पाँव क्यों जाय डगमगा मेरा।

जम गये, छोड़ता जगह क्यों है।

क्यों नहीं गड़ पहाड़ लौं पाता।

दूसरों के उखाड़ देने से।

पाँव क्यों है उखड़ उखड़ जाता।

काँपता बात बात में है जी।

फल बुरे हैं इसी लिए चखते।

पूँ+क से आप उड़ न जावेंगे।

पाँव क्यों फूँक फूँक हैं रखते।

जी लगा यह पाठ हम पढ़ते रहें।

कट गये हैं बाल बढ़ने के लिए।

बात यह चित से कभी उतरे नहीं।

हैं उतरते फूल चढ़ने के लिए।