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रस के छींटे / हरिऔध

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 भाग में मिलना लिखा था ही नहीं।

तुम न आये साँसतें इतनी हुईं।

जी हमारा था बहुत दिन से टँगा।

आज आँखें भी हमारी टँग गईं।

सूखती चाह-बेलि हरिआई।

दूधा की मक्खियाँ बनीं माखें।

रस बहा चाँदनी निकल आई।

खिल गये कौल, हँस पड़ीं आँखें।

सादगी चित से उतर पाई नहीं।

है नहीं भूली भलाई आप की।

काढ़ने से है नहीं कढ़ती कभी।

आँख में सूरत समाई आप की।

लोग वै+से न बेबसों सा बन।

रो उठें, खिल पड़ें, खिझें, माखें।

हो न किस पर गया खुला जादू।

देख जादू भरी हुई आँखें।

बेबसी बेतरह सताती है।

वह हुआ जो न चाहिए होना।

थाम कर रह गये कलेजा हम।

कर गया काम आँख का टोना।

मानता मन नहीं मनाने से।

तलमलाते हैं आँख के तारे।

जागते रात बीत जाती है।

माख के या कि आँख के मारे।

वह बहुत ही लुभावनी सूरत।

हम भला भूल किस तरह जाते।

है तुम्हें देख आँख भर आती।

आँख भर देख भी नहीं पाते।

आँसुओं साथ तरबतर हो हो।

हैं जलन के अगर पड़ी पाले।

सूरतों पर बिसूरती आँखें।

सेंक लें आँख सेंकने वाले।

तब कहें वै+से किसी की चाहतें।

रंगतों में प्यार की हैं ढालती।

जब कि मुखड़ों की लुनाई आप की।

आँख में है लोन राई डालती।

लूट ले प्यार की लपेटों से।

दे निबौरी दिखा दिखा दाखें।

पट, पटा कर, न पट सकी जिससे।

क्यों गई पटपटा न वे आँखें।

है पहेली अजीब पेचीली।

हैं खिली बेलि हैं पकी दाखें।

अधाकढ़ी बात अधागिरी पलकें।

अधाखुले होठ अधाखुली आँखें।

प्यार उनसे भला न क्यों बढ़ता।

हो सके पास से न जो न्यारे।

वे उतारे न चित्ता से उतरे।

हिल सके जिनसे आँख के तारे।

देखते ही पसीज जावेंगे।

रीझ जाते कभी न वे ऊबे।

टल सकेंगे न प्यार से तिल भर।

आँख के तिल सनेह में डूबे।

जी टले पास से धाड़कता है।

जोहते मुख कभी नहीं थकते।

आँख से दूर तब करें वै+से।

जब पलक ओट सह नहीं सकते।

देह सुवु+मारपन बखाने पर।

और सुवु+मारपन बतोले हैं।

छू गये नेक फूल के गजरे।

पड़ गये हाथ में फफोले हैं।

धुल रहा हाथ जब निराला था।

तब भला और बात क्या होती।

हाथ के जल गिरे ढले हीरे।

हाथ झाड़े बिखर पड़े मोती।

बात लगती लुभावनी कह सुन।

बन दुखी, हो निहाल, दुख सुख से।

दिल हिले, आँख से गिरे मोती।

दिल खिले, फूल झड़ पड़े मुख से।

चाह कर के हैं बढ़ाते चाह वे।

खिल रहे हैं औ खिला हैं वे रहे।

मिल रहे हैं औ रहे हैं वे मिला।

दे रहे दिल और दिल हैं ले रहे।

क्यों पियेगा ललक चकोर नहीं।

जायगी चंद की कला जो मिल ।

फूल खिला क्यों लुभा न दिल लेगा।

चोर दिल का न क्यों चुरा ले दिल।

लोचनों की ललक हुई दूनी।

वह बिना मोल का बना चेरा।

देख कर लोच लोच वाले का।

रह गया दिल ललच ललच मेरा।

बाप माँ के अडोल कानों को।

बूँद मिलती न तो अमी घोली।

बोल अनमोल रस लपेटे जो।

बोलतीं बेटियाँ न मुँहबोली।