भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीरे के लिए कविता / नाज़िम हिक़मत

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:05, 29 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत |संग्रह=चलते-फिरते ढेले उपजाऊ मिट्टी...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: नाज़िम हिक़मत  » संग्रह: चलते-फिरते ढेले उपजाऊ मिट्टी के
»  पीरे के लिए कविता


मैं क़िताब पढ़ता हूँ

तुम उसमें हो

गीत सुनता हूँ

तुम उसमें हो

खाने बैठा हूँ रोटी

तुम बैठी हो सामने

मैं काम करता हूँ

तुम वहाँ मौज़ूद हो


हालाँकि हाज़िर हो तुम सभी जगह

बात नहीं कर सकती तुम मुझ से

सुन नहीं पाते हम आवाज़ एक-दूजे की