परीक्षा / सुरेन्द्र रघुवंशी
जाग रहे हैं विद्यार्थी रात-रात भर
साल भर तक आलस्य में छोड़ दिया गया कोर्स
करना है इस सीमित समय में पूरा
परीक्षा को नहीं बढाया जा सकता आगे
हम सब विद्यार्थी हैं अपने-अपने स्तर पर
देनी होगी हमें अपनी-अपनी परीक्षा
मैं विद्यालय की कक्षा का सबसे कमज़ोर छात्र हूँ
हमेशा बैठा रहा कक्षा की आख़िरी बेंच पर
बचता हुआ शिक्षक की नज़रों से
नींद की भेंट चढ़ गए सारे पीरियड
आलस्य का दीमक खा गया प्रतिभा की लकड़ी को
विभिन्न विषयों के सभी पाठ पढ़ने के लिए
खोली ही नहीं क़िताब
क़िताबों में भरी हुई ज्ञान की झील
प्रतीक्षा करती रही मेरे उसमें डूबकर तैरने की
पर यह कहकर की मुझे तैरना ही नहीं आता
मैं भाग खड़ा हुआ
सुन्दर अध्यायों के के बगीचों में खिलते रहे
विविध रंगों के विविध फूल
कोयल सुरीले गीतों में देती रही आमन्त्रण
मैंने बगीचे में प्रवेश ही नहीं किया
और भटकता रहा उन अनजानी गलियों में
जो मेरी थी ही नहीं
और न मुझे कोई बुला रहा था वहाँ
कोई तैयारी नहीं कोई प्रश्न याद नहीं
परीक्षा की तिथि आगे नहीं बढ़ रही
प्रश्नपत्र गोपनीय लिफ़ाफ़ों में बन्द हैं
परीक्षा में कौन सा प्रश्न पूछा जाएगा पता नही
ऍन वक़्त पर सरसरी निग़ाह
डाली जा सकती है अब भी उत्तरों पर
अच्छी श्रेणी न सही
पर जुटाए जा सकते हैं उत्तीर्ण होने लायक अंक
जो भी हो परीक्षा तो देनी ही होगी
और रहना होगा तैयार किसी भी परिणाम के लिए