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जेल से लिखी चिट्ठियाँ-2 / नाज़िम हिक़मत
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अपना बेटा बीमार है
उसका बाप है जेल में
भारी माथा तुम्हारा टिका हुआ है तुम्हारे थके हाथों पर
एक ही मुक़ाम पर हैं हम सब, ये दुनिया और अपन लोग
लोग लोगों को पहुँचाएंगे
बुरे दिनों से बेहतर दिनों तक
हमारा बेटा चंगा हो जाएगा
उसका बाप छूट जाएगा जेल से
तुम मुस्कराओगी गहरे अपनी भूरी आँखों में
एक ही मुक़ाम पर हैं हम सब, ये दुनिया और अपन लोग