भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठण्ड से जमा प्रदेश / योसिफ़ ब्रोदस्की

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:10, 27 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योसिफ़ ब्रोदस्की |अनुवादक=वरयाम ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये० पे० के लिए

ठण्ड से जम गया है यह समृद्ध प्रदेश ।
प्रतिबिम्ब के दूध में छिप गया है शहर ।
घण्टियाँ बजने लगी हैं ।
लैम्पशेड सहित एक कमरा । हुल्‍लड़ मचा रहे हैं देवदूत
ठीक जैसे रसोई से निकलते बेयरे ।

मैं तुम्‍हें यह पृथ्‍वी के दूसरे छोर से लिख रहा हूँ
ईसा मसीह के जन्‍मदिवस पर । बाहर बर्फ़ का ढेर
निष्‍ठापूर्वक कहता है -- 'ऐ लोगो !'
उजाला बढ़ रहा है शीघ्र ईसा
दो हज़ार वर्ष के हो जाएँगे । बचे हैं केवल चौदह वर् ष।
आज बुधवार है । कल वीरवार । इस जयन्ती पर,
डर है, हम कुछ जुगाड़ नहीं कर पाएँगे सम्भावित झुर्रियों को ।
आम भाषा में कहें तो, उसके गाल से ।
और तभी हम मिलेंगे जैसे तारा मिलता है गाँव वालों से
एक दीवार पार कर, एक उँगली से जगाया गया पिआनों
कष्‍ट पहुँचा रहा है कानों को जैसे कोई
वर्णमाला सीख रहा हो ।
या खगोलविद्या कुछ होती ही नहीं जब देखते हैं
व्‍यक्तिवाचक संज्ञाओं को वहाँ अंकित, जहाँ हम हों ही न ।
जहाँ योगफल निर्भर करता हो घटाने की प्रक्रिया पर।