भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पिता / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:24, 1 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह=क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
याद है
बचपन में खाए
पिता के जबर हाथों का तमाचा
ऐसे मारते थे पिता
कि मारे और रोने भी न दें
पिता की मार से
सीख ली रूलाई को गले में गुटकने की कला
शुक्रगुज़ार हूँ पिता
कि ज़िन्दगी में सबसे ज़्यादा काम आई यह कला