भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खिल-खिल खिल-खिल हो रही / काका हाथरसी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 29 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=काका हाथरसी |संग्रह=खिलखिलाहट / काका हाथरसी }} खिल-खिल ख...)
खिल-खिल खिल-खिल हो रही, श्री यमुना के कूल
अलि अवगुंठन खिल गए, कली बन गईं फूल
कली बन गईं फूल, हास्य की अद्भुत माया
रंजोग़म हो ध्वस्त, मस्त हो जाती काया
संगृहीत कवि मीत, मंच पर जब-जब गाएँ
हाथ मिलाने स्वयं दूर-दर्शन जी आएँ