भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीते दिन / कैलाश गौतम

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:40, 29 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश गौतम |संग्रह=कविता लौट पड़ी / कैलाश गौतम }} बीते द...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बीते दिन
मैं भूल नहीं पाता,
था कोई जो
मुझे देखकर
मई जून की तेज धूप में
मेरे आगे हो जाता था
बादल पेड़ खुला छाता।

मन से जुड़ता
चुटकी लेता
ताने कसता था,
खिल उठता था ताल
चाँद पानी में हँसता था
मैं उसकी आँखों में सोता
वह मेरी साँसों में गाता।

कैसे-कैसे शहर और
कैसी यात्रायें हैं,
तेज धार में हाथ थामकर
साथ नहाये हैं
कितना सहज समर्पण था वह
कैसा था स्वाभाविक नाता

कैसी-कैसी सीमायें थीं
कैसे घेरे थे,
शामें थीं रसवंत और
जीवंत सबेरे थे
तन जैसे लहराता रहता
रस जैसे मौसम बरसाता।