भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब मैं प्यार करता हूँ / निज़ार क़ब्बानी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:57, 2 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निज़ार क़ब्बानी |अनुवादक=रीनू तल...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जब मैं प्यार करता हूँ
लगता है जैसे मैं हूँ समय का राजा
यह सारी धरती और इस पर जो कुछ भी है
मेरा है
और मैं अपने घोड़े पर चढ़
जा सकता हूँ सूरज के पार ।
जब मैं प्यार करता हूँ
बन जाता हूँ तरल रोशनी
आँखों से अदृश्य हो जाता हूँ
और मेरी कापियों में लिखी कविताएँ
लाल और पीले फूलों के खेत बन जाती हैं ।
जब मैं प्यार करता हूँ
पानी के सोते फूट पड़ते है मेरी उँगलियों के पोरों से
मेरी जीभ पर घास उग आती है
जब मैं प्यार करता हूँ
बन जाता हूँ समस्त समय के बाहर का समय ।
जब मैं एक औरत को प्यार करता हूँ
सभी पेड़
नंगे पैर दौड़ आते है मेरे पास...