ब्याह के आईं तो लाल गुलाब थीं
जल्द ही पीला कनेर हो गयीं चाची
घर भर को पसंद था
उनके हाथ का सुस्वाद भोजन
कड़ाई–बुनाई–सिलाई
सलीका–तरीका
बोली–बानी
बात–व्यवहार
नापसंद कि दहेज कम लाई थी चाची
जाड़े की रात में ठंडे पानी से नहातीं
झीनी साड़ी पहनतीं
गूंज रहे होते जब कमरे में
चाचा के खर्राटे
बेचैनी से बरामदे में टहलतीं
जाने किस आग में जलतीं थीं चाची
चाचा जब गए विदेश
एक हरा आदमी उनसे मिलने आया
"बचपन का साथी है" _कहकर जब वे मुस्कुराईं
मुझे बिहारी की नायिका नजर आईं चाची
उस दिन से चाची हरी होती गयीं
दोनों सुग्गा-सुग्गी बन गए
पर जिस दिन लौटे चाचा
नीली नजर आईं चाची
सोचती हूँ _काश, मैं दे सकती पंख
खोल सकती खिड़की-दरवाजे
उड़ा सकती सुग्गी को सुग्गे के पास