भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने बेटे से-2 / देवयानी
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 9 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवयानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <...' के साथ नया पन्ना बनाया)
यह जो तुम सुंदर युवक में तब्दील हुए जाते हो
यह जो तुम्हारी नाक के नीचे और गालो पर
नर्म राएं उगने लगे हैं
यह जो तुम बलिष्ठ दिखने लगे हो
इतना मुग्ध होती हूं मैं तम्हें देख कर
कि मन ही मन उतार लेती हूं तुम्हारी नजर
अक्सर ही तुम्हारे माथे पर दिठौना लगा देती हूं