भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रकृति और हम / अनातोली परपरा
Kavita Kosh से
Linaniaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:14, 1 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=अनातोली पारपरा |संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली प...)
|
जब भी घायल होता है मन
प्रकृति रखती उस पर मलहम
पर उसे हम भूल जाते हैं
ध्यान कहाँ रख पाते हैं
उसकी नदियाँ, उसके सागर
उसके जंगल और पहाड़
सब हितसाधन करते हमारा
पर उसे दें हम उजाड़
योजना कभी बनाएँ भयानक
कभी सोच लें ऎसे काम
नष्ट करें कुदरत की रौनक
हम, जो उसकी ही सन्तान