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सात छोटी कविताएँ / अनातोली परपरा

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1

हे सुन्दरता

आख़िर

इस धरती पर

छोड़ी नहीं तूने अपनी मस्ती

बदमस्ती वह...


2

रात का पतंगा हूँ

अन्धा मैं

तेरी विकट नील आभा से


3

देखो...बर्फ़ वह कपासी

उड़ रही

धरती के संग-साथ


4

पतझड़ में उदास

वह बागीचा

डूबा है आकंठ

बारिश के प्यार में...


5

दुख तो यह है दोस्त !

कि अभिमान होता है पैदा

बुद्धि से पहले...


6

सुनो !

सुन रहे हो तुम

बारिश से डरकर

भाग रहे हैं पेड़...


7

अरे ! यह क्या कह रहे हो

देखो, बुद्धि बड़ख़ूब जानती है

प्यार के बारे में