पैली कड़ी : सिकवो / प्रमोद कुमार शर्मा
{{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार शर्मा |संग्रह=खुद री जबान रो गीत / प्रमोद कुमार शर्मा
जबान
कर दिन्यो हैरान
-बयान
लेय’र हाजर होगी सपनै मांय
-अरड़ाण लागी
-बरड़ाण लागी
अंट-शंट जको मन मांय आयो
म्हैं घणोई समझायो
कै चूंच है तो चुग्गो भी होसी
गाम है तो हुक्को भी होसी
आपणा भी दिन आसी ऊजळा
अर रातां जुवान होसी
थारै पपड़ाया होठां पर
अेक दिन मुस्कान होसी
पण जबान मानी कोनी
बोली- थांनै हैरानी कोनी
म्हारो हुवणो अर्थहीण है
-स्रद्र्गंद्दद्ध.द्म है
सै रा सै जका म्हनैं दाबै
मोस-मोस’र राखै
कंठ म्हारो सुरीलो
जीं रै ताण ई
दीसै है सो हिल्लो
पण कबीलो-
अजै भी जाग्यो कोनी
संविधान मांय अनुच्छेद
म्हारो लाग्यो कोनी
पछै भी :
जीयाजूण नैं साधणो है
-रांधणो है
करमा रै खीचड़ै नैं संभाळ-संभाळ
काया री काची हांडी मांय
सोधणो है मूं; दुमही बांडी मांय
कितरी बडी सरत है
पण डाढी मोटी परत है
परत ऊपर बिछ्योड़ी जाळ दांई
म्हारी संस्कृति कळपै है कंकाळ दांई
अरे कोई तो होस करो
कोई तो करो कारो
जीवतोड़ी माय नैं
इण ढब ना मारो
कै मरतोड़ी बखत
बीं रै होठां पर राम ना आवै-
-आराम ना आवै
चौरासी री उलटफेर स्यूं
परकास ना मिलै अंधेर स्यूं!
पण ओ काम तो सबद करै
बो ई रुखाळै गोखा मांयला इंडा
पण हमै कठै है वै पळींडा
जठै भर्योड़ा घड़ा
अडीक करता तिरसायै री
पायेदार आदमी
बात करता पायै री!
जठै आंगणै मांय चीड़ो-चीड़ी रास रचाता
जठै ब्याह मांय आपां घोड़ी नैं नचाता
जठै पीढै ऊपर बैठी डोकरी हालती रैवती
जठै बाखळ तांई बातां चालती रैवती
जठै गायां रै खुरां हेठै सुरग हो
जठै आपणै गीतां रो दुरग हो
जठै संत फकीरां नाम जप्यो
जठै सती-साधव्यां जौहर रच्यो
जठै गिरधर री मीरा नाची रे!
जठै धोरां री मखमल काची रे!!
सो रो सो दरसाव खाली व्हैग्यो
ट्रैक्टर री बेसुरी ट्राली व्हैग्यो
जिणरै मांयनै सरणाटो खड़कै
धड़कै!
धड़कै!!
म्हारो जी पण जोर के चालै?
‘अंग्रेजां’ नैं कुण पालै?
वांरी नीतियां अजै तांई चालै
संविधान भी
बात करै समता री
पण बरतै भेद व्योवहार मांय
अेक रुळती फिरै गळियां
अर अेक सजै दरबार मांय
म्हैं नाजोगी!
राजस्थान री जबान हूँ
सरकारां स्यूं परेशान हूँ।
सरकार!
सरूप है लोक रै तंतर रो
राज रै मंतर रो
जका जपै है बिरला योगी
बैठ’र पैलीपोत धोरां री पाळ पर
-देख’र हर्यै जाळ पर
चीड़ी नैं बोलतां वै सोचै कै
पनप सकै जीवण अठै।
सरकारां जीवण स्यूं
जीवण भाखा स्यूं है
भाखा अस्तित्व स्यूं है
अस्तित्व!
बो ही तो सोधणै सारू
माणस रै खोळ मांय जलम मिलै
नींतर पछै
ब्रह्म रो ओ कमल क्यूं खिलै
म्हारी ओळूं मांय
रजधरा भर्योड़ी है
सबद रै सिणगार स्यूं
चाँद उतर्यो कोनी
अजै अठै गिगनार स्यूं
साची कैवूं :
मायड़ भाखा अणहद री हेली है
बा मीरां अर गुरु गोरख री चेली है
बा पक्कै गुड़ री भेली है
पण :
अजै भी गंगू तेली है
इण वास्तै-
सात हाथ री हूंवती थकां भी
म्हारी कोई औकात कोनी
जीभ तो हूँ जात स्यूं
पण म्हारी कोई जात कोनी।