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चौथी कड़ी : फिकर / प्रमोद कुमार शर्मा

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{{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार शर्मा |संग्रह=खुद री जबान रो गीत / प्रमोद कुमार शर्मा

मुगती!
मोख!
फगत सबद रो सुपनो है
-सरीर रो नईं
सरीर तो फिरै पदड़का मारता
वासना रै जंगळ मांय
ढुई को मारै नीं अमरता री
आजकाल रा पळगोड होयैड़ा लोग
-रोग
लागग्यो सै नैं भौतकवाद रो
सै रा सै बिल्डिंगां बणावै
कारां नैं फूलां स्यूं सजावै
भजावै बांनै राजपथ पर
इण ढाळ कै दूजो कोई व्हैई नीं बठै

दूजो ई तो को सुहावै नीं, बांनै
बै दूजै रै नांव ऊपर आपरो नांव लिखद्यै
बै दूजै रै गांव ऊपर आपरो गांव लिखद्यै
दूजै रा खुर खोदल्यै मुसाणां में
पाणा रोज मांडल्यै, नूंवा पाणां में
बांनै कांई ठा-
हवेल्यां बचायां स्यूं के होसी
कोई सबद बचावो
राम फेरूं निर्वासित है
कोई अवध बचाओ

अर आ रमाण-
इण बखत सै स्यूं कसूती रमाण है
क्यूं कै कथाकार सुंदरम् कैवै :
सड़क ऊपर घूमतो आदमी
खुल्लो तीर-कमाण है

आदमी अर आदमी बिचाळै दीवार है
आदमियत भोत बीमार है
पछै भी मानखो-
जे जड़ नीं सोधै आपरी
तो बसीयत के करै बाप री!
उजाड़ हुवणो आपै ई सरू हूज्यै
चंगो-भलो घराणो अरू-बरू हूज्यै
ठा नीं-
कितरा ई घराणा मटियामेट हूग्या
साची आपां भाखा रै
इस्कूल पूगण तांई लेट हूग्या।

हमै :
म्हैं नाजोगी जबान
सोचूं अेकली आ बात ध्यान में
तो कमी दीसै सारी किसान में
ठीक है-
बैल छोड क्रेन ले आया
ढाणी-ढाणी ट्रेन ले आया
बीज ल्यावण लाग्या अमेरिका स्यूं
मसाला आवण लाग्या अफ्रीका स्यूं
धोती छोड जीन्स बपराली
बाड़ै मांय टाइल्स लगवाली
दर मजलां दर कूचां
चाल्या करता हा यार
पण हमै तो छोडां ई कोनी
घड़ी अेक कार
-के है विचार?
आ भोम कोई मोज-मेळै री जिग्यां है
या कोई माल-खजानै रो नक्सो
-बक्सो
बापजी इणनैं बक्सो!
क्यूंकै बीज तो बापड़ी
उगांवती रैसी आपरी मरजादा रै ताण
पण बां बीजां मांय सत नीं हुसी
दाणां तो घणाई
पण भोरो भी तत् नीं होसी
अैड़ी सत-तत्बायरी फसलां स्यूं
कदै स्रिस्टी रो विकास हुयो है
जद-कदै भी हुयो है-
अैड़ै बिसपाई बीजां स्यूं विणास हुयो है

तो भाईड़ां!
विणास हुवणो सरू व्हैग्यो है
आप तो यूं समझो
अठैई परलै पासै
फैक्टर्यां मांय आदमी ढळण लाग्या है
कई सरमायेदार
बांनै खरीदण जाग्या है
बै सै रा सै आतमहीण
बिकण नै त्यार है
सिट्टो कळजुग रो
सिकण नै त्यार है
अैड़ै कसूतै बखत मांय
सोधो सबद रगत मांय
ताकि कीं सत बापरै
लोगां नैं निज भाखा री लत बापरै
आ लत जरूरी है
नींतर जी हजूरी है
बीजी-बीजी भाखावां रा टाळवां कथ
घणाई है जी राजी करण नै
-भरण नै
गोझ मांय मोती अर सीप
लोगड़ा बेकरार है
पण :
सत्य साम्हीं सब बेकार है
सत्य है-
भाखा स्यूं सरीर रो बणनो
बणनो है सगळै ब्रह्मांड रो
रहस जाणै योगी जाणीजाण
नो मण सूत रै कुस्मांड रो
हाय!
म्हैं सरीरां स्यूं अळगी रैयगी
हाय!
म्हैं ब्रह्मांड मांय बळती रैयगी
हाय!
म्हारै कुस्मांड नै छळती रैयगी
हमै सतबायरी
अेकली डरती 4ह्न3द्मड्र्ढं-सी
घूमूं गांव-सैर री गळी-गळी
पण अजै तांई म्हारी आस नीं फळी
संविधान मानै कोनी
भाखा रै सांवठै रूप में
गतागम हुयोड़ी
पड़ी हूँ अंधकूप में
जठै पड़ी-पड़ी
दिन-रात संतां री वाणी याद करूं
-फरियाद करूं
डूब जाऊं फिकर में
हो जाऊं हतास
के?
  के??
के???
हो जासी
मायड़ भाखा रो विणास
पछै म्हारो-
सात हाथ रो डील कठै जासी
म्हारी सतियां रो सील कठै जासी

पण कठै जिकर है....?
ईं बात रो म्हनैं घणो फिकर है
-फिकर है।