भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाँचवीं कड़ी : चेतावणी / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:15, 21 अप्रैल 2014 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आप कदै
ढाळ उतरती साइकिल पर सवार
मुळकतै मिनख रै होठां ऊपर
कोई गीत कदास सुण्यो व्हैसी
म्हैं भी उणी ढाळ
निज रा गीत गावणा चावूं
पण आखड़ जावूं
ढाळ अेक खाई मांय बदळज्यै
  -मसळज्यै
कांकरा म्हारी पगथळ्यां रा छाला
समझै आ पीड़ मिनख कोई आला
कै सुख अर दुख रै ऊंचाव पर
गैराई में आणंद रै पहुँचाव पर
जीव-
निज भाखा नैं सींवरै
-धींवरै
चिपज्यै कंगारू रै बच्चै दांई
जणै जाय’र अंतर मांय बस्योड़ै
आतम रै परकास नैं जगा सकै
जिणरै बिना सरीर; सरीर नीं
-फगत ढांचो है
जको सै स्यूं पुराणो खांचो है
बो आप ई आप
रोळ-फोळ होवण लागर्यो है
म्हैं हूँ गोळची मैच मांय
अर म्हारै सिर गोळ होवण लागर्यो है

अैड़ी ढाळ म्हैं हारी हूँ
पण अजै गोडी नीं ढाळी है
काळी हूँ म्हैं रूप स्यूं
जल्दी स्यूं छेहड़ो को छोडूं नीं
सत सांवरै रो बेड़ो को छोडूं नीं
भलांई रैय जाऊं अेकली कुरळांवती
पण लाधूंली काचो सूत सुळझांवती
जको धरती रै विस्तार नैं बांधै है
अर जीव नैं करमां रै कड़ावै मांय रांधै है
साची कैवूं कविराज!
कमतर नीं हूँ किणी भी भाखा स्यूं
मुगती रो मारग सोधण मांय
-बोधण मांय
तत् री बात इण कूड़ बखत मांय
म्हैं सोधूं हूं अगन-रगत मांय
पण लोग रगतहीण होग्या
-छीण होग्या
बंारै सुपनै मांय मुळकता रूंख
म्हैं रूंख सोधूं-
खोदूं फरहाद दांई पहाड़
कैवणै पर बण सिरी रै
खोद्यो हो अेक ही रात मांय
म्हैं भी :
द्भद्मक्र;2ड्ड जागूंली
अर थारै काळजै रै बीचोबीच
जाय’र लागूंली!

सोचो-
उण दिन कांई करोला
जद गीतां रा कापीराईट व्है जासी
पोजिसन आपणी
ओर भी टाईट व्है जासी
ब्याव-सादी-मोकाण
सै इवेंट मैनेजमेंट बण जासी
नसां रिस्तां री ओर तण जासी
कोई लुकाव-छुपाव कोनी राखसी
लोग गोळी मारणै मांय
अैड़ो कसूतो टेम आसी
भांत-भंतीला बैम आसी
सांसां रो सांसो हो जासी
बातां रो फांसो हो जासी
अैड़ै गोळी मार बखत मांय
-तखत मांय
जे कर हुवै सत अर सील
तो लोक री लाज रुखाळण नै
आपरी गवाड़ी संभाळण नै
कोई तो द्गह्नद्घ[द्म;द्मह्य आवाज उठासी
या इणी ढाळ धोळी कारां रै
काळा शीशां लारै मूंछ्यां झुकासी
आ ईज बात सोच-सोच परेसान हूँ
संसद कांनी देख-देख हैरान हूँ
क्यूं पूरै अेक प्रदेस री
रीढ री हाडी तोड़ै है
आठ करोड़ लोग भींत्यां स्यूं
रोजीना सिर फोड़ै है
पछै भी :
सरकार-
जीवण मांय म्हारी
दरकार मानै कोनी
पण कांई-
म्हैं आतमहत्या कर लेवूं!?

तौबा!
तीन बार तौबा म्हारी ज्यान री
दोबारा बात करूं जे हीणै ई मान री

म्हैं तो खरी हूँ
बीनणी री बरी हूँ
हरी-भरी हूँ
फेर क्यूं पछतावूं
क्यूं नीं जसन मनाऊं
इतरा गीत गावूं कै
संसद री भींत्यां कांपण लागज्यै
अर म्हारा आलोचक हांफण लागज्यै

समझो तो-
आ म्हारी चेतावणी है
-चेत करो!
आपरी मायड़ भाखा स्यूं
-हेत करो!
जको थे बच्या रैवो
बजारां री रेलमपेल में
रुळ नीं जावो कठैई
राजनीत रै खेल में।