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भीतर का मज़मा / विपिन चौधरी
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भीतरी साम्राज्य में स्थित
मील के पत्थर
नक़्शे, हवेलियाँ
सभी दर ओ दीवार
सभी चूने, पत्थरों, ईंटों के ढ़ेर
मेरी निगाह में चाक-चौबंद
सांझ को जन्म लेने वाली
भीतरी छौंक से भी परिचय मेरा
मध्याहन की चुहल से भी
दो मगों में औटायी जायेगी
रात की मीठी शीतलता
यह भी मुझे मालूम
हर रोज़ भीतर एक नयी राह पकड़ी
बाहर की राह को भूल जाने के लिये