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नौवीं कड़ी : स्याणो / प्रमोद कुमार शर्मा

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बियांस-
कुण स्याणो कोनी!

सै जाणै-
कै माँ री बोली
सै स्यूं मोटी ओट है
            -चोट है
दुसम्यां रै काळजै पर डंक मारती
आछा-आछा राजा अर रंक मारती
रुखाळी करै सागी-सी
रैवै हर टैम जागी-सी
चालै सुख रै सागै-सागै
रैवै दुख रै आगै-आगै
मौकै स्यूं कदै ना चुकावै
धोखै स्यूं हरमेस बचावै

जद कड़ पर कोई धोखै री जात स्यूं
रीढ री हाडी पर सरकावै सिरियो
तो तावळा-सा
भोम पर ना गिरियो
बल्कै अेक हाथ स्यूं सिरियो थाम’र
मायड़ अर भाखा नैं सिंवरियो
चौरासी जोगणियां खप्पर साथै हाजर हूसी
बावन भैरूं त्यार मारण खातर हूसी
बहत्तर हजार नाडिय़ां बंट खावैली
अर थारी आतमा करंट खावैली
चोट रो असर मांदो पड़ज्यैगो
दुस्मीं जमीं मांय गड़ज्यैगो
हाथ-पैर बांध देसी काचै सूत स्यूं
धाप जावैली हरमेस तांई इस्यै कपूत स्यूं
बीं री छेवट हार होसी
आपरै तांई विजय-रथ त्यार होसी

ईं खातर-
तावळा-तावळा
मायड़ नैं सिमरो
सिमरो पद कबीर अर मीरां रा
गुरु गोरख सरीखै पीरां रा
वेलि क्रिसण रुकमणी री पढो
लू अर बादळी स्यूं ऊपर चढो
हिड़दै नैं सबद रो समद बणाल्यो
भजन, वाणी, नात अर हमद बणाल्यो
घट नैं सिणगार ल्यो
निज भाखा री ओरण स्यूं
के फायदो-
अंग्रेजी मांय जीभड़ल्यां टोरण स्यूं
हालांकै-
नफरत नीं है म्हनैं
बीजी किणी भाखा स्यूं
-साखा स्यूं
परमात्मा री जकी लगाई है बण
जिग्यां-जिग्यां आपरी मौज मांय
म्हैं तो लागी रैवूं इण खोज मांय
कै किसी म्हारी बैन नैं
सत रो सुहाग लाध्यो है
अर कुणसी बडेरी माँ
आपरो भाग अराध्यो है
कूड़ ना समझियो थे म्हारी बात नैं
कदै तो समझो म्हारी सरुआत नैं
म्हारै अंग-चंग मांय
विस्व भाखावां रा टाळवां ग्रंथ
मांसपेसियां दांई मचकै है
अर म्हारी कमर-
बीं सौंदर्य नैं संभाळतां लचकै है
जूनो छापो है प्रदेस रो
जूनी सबदां री टकसाळ है
पण कठै बा रुखाळ है
-भूचाळ है
च्यारूं कूंटां लाव-लाव चासणी रो
जाणै चसकारा मांय कितरी उमरां गाळ दी
जद सड़कां पर भाजती कारां देखूं
सोचूं कुणसै जादूगर उछाळ दी
ठा नीं कितरी रोज बणै कारखानां मांय
ढळै पात रा पात, आदमी री जात
कारां करै सिणगार
प्रयोगसाला री हुवै दरकार
अेक-अेक चीज परखीजै
टीवियां निरखीजै
ग्राहक सै हरखीजै
भांत-भंतीला विग्यापन
वांनै कारां री बॉडी लैंग्वेज सिखावै
वांरी जीभ पर अंग्रेजी ‘टूल’ आज्यै
सुपना मांय ‘ग्लोबल इस्कूल’ आज्यै
जठै म्हैं मरणजोगी!
दफ्तर दाखिल व्है ज्यासूं
हाय!
म्हैं कितरी गाफिल व्है ज्यासूं
कै पैली भाखा मांय ‘टूल’ आवण देवूं
पछै मानखै मांय ‘भूल’ आवण देवूं
भौतकवाद नैं सात सलाम करूं
अर बैठी फगत राम-राम करूं!

ना-ना!
म्हारै स्यूं अैड़ो काम को हुवै नीं
छेवट जबान हूँ
साच बदनाम को हुवै नीं
म्हैं तो साच नैं रुखाळूंली
टीटूड़ी रै अंडा री ढाल बण
तण जासूं च्यारूं पासै
सरकंडां रै ढाळै
जिणरी खांप स्यूं कातिल हाथ चिरीज्यैगो
म्हनैं मारणवाळो
खुद मिरतु स्यूं घिरीज्यैगो
पण पछै हाँसूं :
म्हनैं मार कुण सकै?
सबद तो आतमा है
असृष्ट, स्वयंभू, सनातन
बीं नैं कद पुष्टि री दरकार है
पण पछै भी अठै सरकार है
ईं वास्तै
म्हैं तावळी-तावळी
जिग्यां-जिग्यां परचा देवण लागरी हूँ
ताकि :
सरकारां बखत स्यूं पैली जाग सकै
अर बंारै हिस्सै कीं स्याबासी लाग सकै
कै भली है बै सरकारां
जकी मुलक री भाखा रुखाळै
-पाळै
टाबरी निज भाखा मांय अरड़ांवती
लाधै आपरी कौम नैं किताबां पढांवती
पण :
अै तो स्याणा लोगां रा काम है
बियांस स्याणां रो गांव न्यारो नीं व्है
नींद अर मद बांनै प्यारो नीं व्है
बै कद सोया करै
माया री मदीली रातां मांय
कळजुग री ठाडी रसवंती बातां मांय
कणा सोधै अरथ बै कूड़ मांय
भेद नीं समझै सोनै अर धूड़ मांय

के ठा भाई!
मुलक तो ओ बो ईज स्याणां रो है
पण के करूं-
सवाल पेट अर दाणां रो है
पेट री आग दिनोंदिन बधी बगै है
मिनख-मारणो काळ सै नैं ठगै है।

जीभड़ल्यां
अर्थ सोधण सारू
आकळ-बाकळ है
पण रोजगार दफ्तरां री
बंद बाखळ है
आंख्यां तरसज्यै आपरै नांव नैं
लोग छोड्यां बगै है
-दिनोंदिन गांव नैं
इतरो पलायन व्हैग्यो है
कै जीवण विचित्र रसायन व्हैग्यो है
लोग फरेब रा जाळ रचै है
पण माटी रा घर कद तांई बचै है
रोज कांधां स्यूं कांधा लड़ै है
जाणै पीपळ रा पात झड़ै है
उण ढाळै सुपना मुरझावै है
म्हारै जापै मांय
म्हारी टाबरी कुरळावै है
बांनै ठाह ई कोनी कै
निज भाखा स्यूं अळघा होय’र
बै नौकरियां स्यूं
दूर होवण लाग रैया है
-मजबूर होवण लाग रैया है
हाथ जोड़ण खातर अफसरां नैं
बै तलासै रोज दफ्तरां नैं
पण शीशे रा चौखटिया दरवाजा नीं पावसै
नीं पड़ै आंख्यां नैं चैन
-दिन-रैन
उळझता ई जावै जीवण रा अर्थ
लागै सै डिगरियां व्यर्थ
माथै रो पसीनो गाळ-सी लागै
आपरै मांयनै ई हड़ताळ-सी लागै
रीस आवै सरकारां पर
तरस आवै परिवारां पर
भूखां नैं तिरवाळा आवै
द्घठ्ठह्व स्रद्मत्रद्मड्ड द्बद्भ स्रद्मत्रद्म 1द्मशस्
हरेक दिन री ड्यौढी पर
सूरज रा तकादा हुवै
खाली जेबां ऊपर
ख्वाहिसां रा लबादा हुवै
सै मरण-मारण नैं त्यार है
म्हारो मानखो भोत बीमार है
पण कठै बो दरबार है
जको प्रजा री सुणवाई करै
पेट अर भूख रो जुगाड़
अठै तो है चौतरफा बिगाड़
लोग भौतक विग्यानी व्हैग्या
पदारथां री निसाणी व्हैग्या
आदमी अर वस्तु मांय फरक कोनी रैयो
म्हारी खुसबू मांय हमै अरक कोनी रैयो

हाय!
ढाई मण लकड़ी भेळी करणै मांय
आखी उमर गमाय दी
म्हारा लोग आपरी समझ नैं
टांग्यां मांय रुळाय दी
टांग्यां-
टांग्यां ई टांग्यां है
सड़कां ऊपर भाजती दिन-रात
अडीकती परभात
पण कुण जाणै
सूरज रो गांव लारै रैयग्यो
काम बस अेक थारै-म्हारै रैयग्यो
कै अंधारै नैं ढोंवता रैयजो!
अर जियां सूत्या हो
बियां ई सोंवता रैयजो!