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तीजी कड़ी : रमाण / प्रमोद कुमार शर्मा

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...तो सरुआत करूं कथणै री
म्हारै विसाद नैं विधिवत
-सत
काढ लियो बण म्हारै काळजै रो
अर म्हारो माजनो सो मार दियो
धोड़ दिया कुप्प, धोड़ दिया बटोड़ा
देखा-देखी सारो मामलो ई सार दियो

के-के बताऊं, घणा दुख है
अर कठै बै मुख है
जका उचारै पीड़ पराई नैं
पछै भी सिळगाऊं दियासळाई नैं
के ठा-
अंधारै मांय ‘सूत’ री कोई बाती मिलज्यै
फेरूं मिंगसर, पौ, मा अर काती मिलज्यै
.....
पैलो दुख :
आ नाजोगी पढाई है
-चढाई है
मीलां ई मील लाम्बी
बाम्बी आ किताबां री
बहीखाता अर हिसाबां री
आखर-ग्यान रै दियै री
बात च्यानणै हियै री
ब्याव-सादी या मोकाण री
रमाण या ओसाण री
सै बात्यां-
भाखा स्यूं संवेदन मांय ढळै
पण म्हारो जी घणोई बळै
जद म्हूं संवेदन नैं लीर-लीर होंवतो देखूं
अर लोकचित्त नैं गैरी नींद सोंवतो देखूं
उण वेळा-
घर री चीजां बिचाळै
म्हनैं कविता मरती लखावै
बतावै होळै-होळै बुसकियां साथै
कै चांस व्हैग्यो आपणी हिचक्यां साथै

बताओ-
माँ बिना कुण हर टेम याद करै
जलम्या-जायां सारू जम स्यूं भी वाद करै
पण मायड़ भाखा तो
विस्मृत होवण लागरी है
रोवण लागरी है जार-जार
-बार-बार
हेला मारै सांवरै नैं
कै कदैई तो गवाड़ी संभाळ
म्हारै चीर नै रूखाळ
छेवट भाखा हूँ जूनी
पछै कींकर रैवूं सूनी

जेकर
नीं पढैला लोग म्हनैं
-नीं बोलैला
तो बीच बजारां के तोलैला?
जदकै अठै तुलणो पड़ै
-अर तोलणो पड़ै
जणै जाय’र कीं बोलणो पड़ै

पण म्हारी टाबरी तो जड़ स्यूं गई
म्हारी जवानियां कड़ स्यूं गई
बखत बगै गूंगाऽऽट करतो
बीं री नस, पकड़ स्यूं गई

जिण भी दाबी है
बखत री आ नस
सै स्यूं पैली भाखा मांय दाबी है
पछै जाय’र मैदानां में भोम नापी है

पण अबकै तो आपां
गट्टी ही गाळ दी
टाबरां मांयली समझ
किताबां मांय बाळ दी
ना बै चीड़ी री चूंच जाणै
ना लारो, ना आगूंच जाणै
ना बै गवर रा गीत जाणै
ना बै फळसै री रीत जाणै
ना बै सूत नैं सूत समझै
ना बै ऊत नैं ऊत समझै
बंारै सबदकोस मांय
निज भाखा रो प्रवेस बंद है
आ ईज
म्हारै अर मानखै बिचाळै
सै स्यूं मोटी कंध है
कियां ई आ कंध गिराओ
टाबरां नैं छंद सिखाओ
निज भाखा रा अनूठा
कुण कैय द्यै बांनै झूठा
बडा छंद है मायड़ भाखा में
अपणावै कोई तो अमीर हूज्यै
नस्वर है पण अमर ओ सरीर हूज्यै
आदमी आपरो होवणो सोधल्यै
तत के है सत, आडी बोधल्यै
कुळ, खानदान अर पुरखा मोद मनावै
मर्यां पछै पाणी री प्याऊ अर होद बणावै
जठै जीव-जंत तिरस मिटावै
पण आ बात
अब किसी माँ सिखावै!

इयै वास्तै :
आतम-ग्यान नैं कळपती फिरूं
लूआं बिचाळै तिरसाई बळती फिरूं
सोचूं कठै बो आगम मारग है
जिण पर चाल्यां अमर चोळो मिलै
पण हमै भाखा नैं कठै बो खोळो मिलै
आपां तो खोळियो ई छोड़ दियो
राजस्थान्यां!
थे राजस्थान नैं कठै मोड़ दियो?