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इग्यारवीं कड़ी : जम्मो / प्रमोद कुमार शर्मा

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जागो अे हेली म्हारी!
रात जागण री आई
-जागो
लागो आतमा रै काम पर
क्यूं मूंदा पड़ो हड्डी अर चाम पर।

जागणो ई तो है
पैलां भी जाग्या लोगबाग
चाल्या अंधारै स्यूं परकास कानी
बांरो जीवण अमोलक है
जीवण तो हुवै ई अमोलक है
फेरूं भी निजर कोई हीणी
जे कीमत मांगै कमीणी
लगावै भांत-भांत रा टैक्स
तो मुखमंत्री नैं भेजण स्यूं फैक्स
जीवण सौरो नीं व्हैसी!

बीं रै वास्तै तो
जलम अर मिरतु बिचाळै
सोधणो हूसी मुगती रो मारग!
पण :
दूजां री नकल स्यूं मुगती नीं
भरम रा भाटा मिलै सिरफोड़
बणाल्यो म्हैल भलांई जोड़-जोड़
जावणो तो पड़सी
छोड’र वसीयतनामो
भलांई कितरा ई पगां नैं थामो
कीं नीं बचैला
छोड’र ढाई आखरां नैं
पछै क्यूं पूजो भाखरां नैं
बै ढाई आखर सोधल्यो
अर स्मृति नैं आछी तरियां खोदल्यो
छेवट-
निज भाखा रा गीत ही
रची है प्रेमकथावां अमर
ढोला-मारू
मूमल-महेन्द्रा
जेठवा-उजळी
नागजी-नागमती
सायणी-बीजानंद
का रामू-चनणा रो आनन्द



सै भाखा रा रतन है
-वतन है
आबाद बांरी कहाण्यां स्यूं
वांरां गीत वांरी बाण्यां स्यूं
मित्रो!
अैड़ी कहाण्यां बणो
अर जाय’र तणो
कुमारग चालती सभ्यता साम्हीं
बीं नैं तारण तांई भरो हामी
ओ ईज भाखा रो काम है
जिग्यां-जिग्यां खाली ठाम है
जिणां रै मांयनै अमी भरणो है
अबकै आपां नैं मिल’र कीं करणो है
अवस ही
म्हारा कविसर!
कथेसर!
आलोचक
अर पाठक!
सै मिल’र खोलसी
मानखै रो फाटक!!

म्हैं देख रैयी हूँ-
कीं-कीं जागण लाग्या है लोग
संवेदना री बात करण लाग्या है लोग
आपरै सिल्प नैं साधण लाग्या है लोग
रात्यां काळी करै वै सबद रै साथै
बूंद जुड़ै है समद रै साथै
इणी लोगां रै बिचाळै
नूंवो मुहावरो हूसी
म्हारी जड़्यां पांगरसी
अर पत्तां पर
स्प्रिंकलर फुहावरो हूसी
भाखा रो खेत उगाव करसी
काळ थोड़ो लुकाव करसी
लोगां नैं मुख जुबानी याद हूसी
निज भाखा रा गीत
जागो कविराज!
कठैई बखत ना जावै बीत!!