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छठी कड़ी : अड़कांस / प्रमोद कुमार शर्मा

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जे कागलो काढण लागै गाळ
-डाळ
ऊपर बैठ्यो नीम री धिंगाणै
तो कुसूंण आकास पुराण रो
-कुणसो स्याणो पिछाणै।

सोचूं :
झांझरकै पैली बाखळ बुहारूं
गावती सोनीदेवी रै हरजस री ओळ्यां
‘बिणजारी अे, हंस-हंस बोल
मीठी-मीठी बोल
बातां थारी रैय जासी
बिणजारी अेऽऽऽ!’

साच्याणी
बातां ई रैय जाणी है
पण कुण आ कथा कैय जाणी है
जनमां स्यूं पड़ी है जकी अंधारै मांय
फगत भाखा!
पण उण पेटै तो आपां अचेत हां
आपां नैं ठा ई कोनी कै
भाखा रो असुद्ध हुवणो
सर्वात्मा रै लोही मांय गड़बड़ी मानीज्यै
भाखा मांय गाळ काढणी हड़बड़ी मानीज्यै
पछै भी :
दिन-भर लोग गाळ ऊपर गाळ काढै
धमकावै अेक-दूजै नैं फोनां ऊपर
दिखावै चतराई
-स्याणपाई
-हाथापाई
-उबकाई
करै आपरै मद मांय
बडी-बडी बात्यां
इन्नै-बिन्नै री
पूरी नीं होवै कात्यां
‘म्हैं इयां कर दियो’
‘म्हैं बियां कर दियो’
‘बीं नैं हवा मांय उछाळ दियो’
‘बीं नैं आग मांय बाळ दियो’
‘बीं नैं पाणी मांय गाळ दियो’
‘बीं नैं आकास मांय उकाळ दियो’
‘बीं नैं धरती स्यूं बारै निकाळ दियो’
पतो नीं के-के
अड़ंग-बड़ंग
मद मांय डूब्योड़ा सबद
रचै है भूंडो इंदरजाळ
  -काळ
दीसै है साम्हीं जीव-जगत नैं
डर लागै भगती स्यूं भगत नैं
इण ढाळ-
नांख दियो विस्वास
भाखा रो, लाल बींरा ई
क्यूं न्यौहरा काढो कींरा ई
कोई थांरी बात पर
विस्वास नीं करैला
क्यूंकै सबद रो सांचो ई टूटग्यो
भाखा रो सत भोत लारै छूटग्यो
थे सुण्यो हूसी
थंारै ई बिचाळै
आळै-दियाळै
कदैई कैया करता हा
जनकवि श्री हरीश भादाणी
कै नीं बच्यो है भाखा मांय पाणी
सबद सिक्को है
जको चालतो-चालतो
घिसग्यो है बजार मांय
अर बीं रै मांयलो अरथ
बिकग्यो है दरबार मांय
.....
कीं तो तब्दीली
ल्यावो आप विचार मांय
क्यूंकै हमै साहूकार
म्हांनै संकै स्यूं देखै
करै भांत-भांत रा सवाल
उळझ्योड़ा मौळी रै डोरै दांई
जका चंगी-भली जांटी नैं बांधद्यै
देखूं!
कुणसो सांवरो
मायड़ भाखा री हुंडी सांधद्यै
क्यूंकै
जठै-जठै बा बोलीज्यै
बठै कोई मान-मरजादा कोनी रैया
बोलणिया भी कोई ज्यादा कोनी रैया
अै दोन्यूं-तीन्यूं बातां मिल’र
म्हांनै कर दीवी है लाचार
नींतर उगणीस कद है म्हारा संस्कार
कोई म्हारा लोकगीत तो सुणो!
कोई भजनां री गैरी प्रीत तो सुणो!
कोई वाणी री जूनी रीत तो सुणो!
कोई म्हारी साख्यां री नीत तो सुणो!
कोई म्हारी आड्यां री जीत तो सुणो!

अरे बावळो!
आपरी कैवतां नैं
इयां तडफ़ा’र ना मारो
बै आडी-बाडी होय’र
घूमती फिरै दसूं दिसावां
अर बांनै कान ना लाधै
आप तो यूं समझो-
कै आपरै कोई मरतो हुवै
अर दवायां री दुकान ना लाधै
नईं-नईं!
थे थंारै पित्तरां नैं
इण ढाळै तिरसाया ना मारो
-तारो
जदकै बांनै करज स्यूं
बचणा क्यूं चावो आप
इण जूनै फरज स्यूं
कांई मुगत नीं हुवणो
चौरासी रै मरज स्यूं!

पण इण वास्तै
पैली भाखा नैं
फेरूं संस्कारित करणी पड़सी
घड़ो फेरूं पाणी रो भरणो पड़सी
बीं रै मांयनै धूड़ अर जाळा जमग्या
करम कीं काळां रा काळा जमग्या
वां घड़ां नैं
फेरूं पिणघट दिखाणो है
अबकै आपां नैं
सारो तळछट मिटाणो है
सिखाणो है-
अेक-अेक टाबर नैं मीरां रो पद
बंारै हाथ मांय इकतारो थमाणो है
फेरूं आपां नैं आपणो मोल कमाणो है
जको-
भाखा री गपड़चौथ मांय
इण तरियां रुळियारेट व्हैग्यो
कै अणपढ री कोरी स्लेट व्हैग्यो
कोई भी, कीं भी लिखद्यै
बीं रै अंतकरण ऊपर
भींत्यां मंड्योड़ा विग्यापनां दांई
आ बात लागै-
अेक जूनी थापना दांई
कै माड़ो आदमी कोई कोनी
माड़ी बीं री भाखा है

हाय!
म्हैं माड़ी होगी
विग्यापनां री साड़ी होगी
म्हारो कद घटग्यो संसार मांय
म्हैं वस्तु बणा दी गई बजार मांय
पण :
म्हारी आजादी री धड़कन कठै है
कठै है बा प्राणां री उडारी
जिणरी कूंत मांय आकास छोटो पड़ै है
म्हनैं कद कवियां रो टोटो पड़ै है
.....
न मालम कितरा चातरां
आपरी चतराई स्यूं
म्हारी ओढणी ऊपर मोहरां जड़ी है
धिन है बांरा माईतां नैं
बां लड़ाई अेक बडी लड़ी है
पण अजै भी आ लड़ाई जारी है
ईसर साम्हीं गौर कंवारी है
कोई जणो तो-
म्हारा ढाई आखर सांधद्यै
म्हैं फिरूं घूमती अेकली
म्हनैं संविधान स्यूं बांधद्यै
संविधान होवणो जरूरी है-
नींतर म्हारी व्याकरण अलोप हूज्यासी
अविद्या रो बडो भारी कोप हूज्यासी
क्यूंकै
सबद अर अरथ सोधणै री
विधा रो नांव ई तो व्याकरण है
जिण स्यूं कोई पाणिनी बणै
सोचूं :
म्हारी भी कदै कोई कहाणी बणै
म्हनैं कहाणी री अडीक है
बियां अठै सो ठीक है!