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सातवीं कड़ी : कहाणी / प्रमोद कुमार शर्मा

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अठै!
अठै-कठै?
ठौड़-ठौड़ तो भूमंडली बाजीगरां
फैला दिया जाळ नक्सां रा
आगै-आगै नक्सो है
लारै-लारै अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बजार है
जिणरै साथै
लोन लेवण रो करार है

कुण है-
बै एक्स-वाई-जेड
जका तुड़वा’र नहरां रा हैड
आपरा बगीचा बणा लिया
आपरी छतरी साम्हीं गलीचा तणा लिया

अवस ही पूरी टीम है
जकी देस-भर री जमीं खोद न्हाखी है
रजधरा भी इणरी साखी है
बतौर उदाहरण छापै रै
घणकरा स्हैरां री सींवां रै
आजू-बाजू ई घणी जमीं
अमेरिका रै बैंकां में अडाणै पड़ी है
देखियो, गुलामी सिरहाणै खड़ी है
सोचो साहेबजी!
जमीं मांयली जमीं रो
पुन्न कठै जासी
जद बीजै मुलकां रा व्यौपारी
पाप अठै कमासी
-फैलासी
दुर्गंध सींवां रै चौफेर
मिनख मारती लगावै नीं देर।
साच्याणी :
बडी भारी दुर्गंध हुवै
गटरां मांय बैंवतै रसायनां रै
तीखा रंगां री
सड़ांधण लागै सारो इलाको
-स्यापो
सो उतरज्यै च्यारूं पासै आकास स्यूं
अंधारो जीतै बठै रोज परकास स्यूं
सावधान!
अठै अब
आपणी माटी थोड़ी बची है
घुड़साळ तो बिकगी
फगत घोड़ी बची है
होळै-होळै सभ्यता विस्तार लेसी
वैग्यानिकता अवतार लेसी
लोग हाथां मांय ताकड़ी लेय’र
संतानां रा लखण तोलसी
अर बिकतोड़ा दिमाग
कद म्हनैं बोलसी?

अठै ई च्यारूं पासै
ग्लोबल इस्कूल होया करैला
जिणां री नींव हेटै
आपणा पित्तर सोया करैला
बै-
देख-देख टाबरां नैं गीला नैण करसी
आपसरी मांय सैण करसी
कै भाखा, भेख अर भजन
अै क्यूं छोड्या म्हारा सजन!
तो लाडेसर पीढी मुळकती-सी
मुहावरेदार अंग्रेजी मांय
राजस्थानी नैं इतरी गाळ काढसी
कै ल्याण बापड़ी लाजां मरती
हाथ मांयलो सूत न्हाख’र
-कूवै मांय जाय पड़ैली
अेक अैड़ै जूवै में जाय पड़ैली
जठै बीं रा पांच पति
बीं नैं दांव पर लगासी
दाग पूरै गांव पर आसी।

पांच पति कुण?
बताऊं हूँ सुण!
अेक तो आपणा भूदेव है
दूजा है देवां रा देव अगन
तीजा है करुणावतार जळदेव
चौथा है पवन देव मगन
सै रै बिचाळै देव आकास है
आं पांचां रै बिचाळै
म्हारै डी.अेन.अे. रो परकास है
जिण पर पच्छम री निजर है
-हिजर है
डाढो म्हारै हिवड़ै में इण टैम
उगै भांत-भंतीला बैम
कदै सोचूं :
कै परमात्मा हरमेस खातर
म्हनैं भोम स्यूं ऊपर खींच लेसी
अर म्हारो कत्ल करती बर
आपरी जरड़ी भींच लेसी
क्यूंकै
पांचू पति म्हारा लाचार है
बै ग्लोबल मार्किट मांय बिकण नै त्यार है
बां आपरी पाग उतार’र
चौरायै माथै धर दी है
राजस्थान्यां अबकै
भोत बडी गळती कर दी है
बै निज रै प्राणां स्यूं न्यारा होग्या
अेक ठाडी निजर साम्हीं बेचारा होग्या

ठाडी निजर के कम ठाडी है
हाथ में लाठी है
सिर पर टोप है
आगै-आगै मसीनगन
लारै-लारै तोप है
जीं रै च्यारूं पासै आरोप है
भांत-भंतीला सिर उठावता नागा
पण तोड़द्यै सै कानूनी तागा
ओ खब्बीखान!
आरोपित तिजारती ग्लोबली
-बडो भारी छळी
छळतो ई रहवै हरेक नैं
मुलक भेळा कर लिया दसेक नैं
जका फैक्टर्यां रा अवतार पेस करै
रिपिया सट्टै सरे आम अेस करै
बै लोग-
बण’र व्यौपारी
नक्सां साथै ल्यावै खजानो
अर पछै हाथां मांय कच्ची पैंसिल लेय’र
दिन-रात सोधता रैवै वा जिग्यां
जठै खड़ी कर परी म्हारै गोळी मारणी है
आठ करोड़ जनता
आ भोळी मारणी है
म्हैं तो मरण नै त्यार हूँ
पण कदै-कदै हाँसूं-
बिना आपरै स्ट्रैक्चर रै
लारै-लारै ट्रैक्टर रै
भाज्यां स्यूं नीं व्हैलो विकास
बीं रै वास्तै
सै स्यूं पैलां
भाखा रो विकास जरूरी है
पण देखो :
आठ करोड़ लोगां री कैड़ी मजबूरी है
कै बांरी आपरै ई फळसै स्यूं दूरी है

साथ्यां!
आपां नैं आ दूरी नापणी है
हरेक ना छपी पोथी छापणी है
भलांई लोग ना पढै
-चढै
पोड़्यां ऊपर लाइब्रेर्यां री
तो भी-
अेक दिन जहाजी पंछी पाछो बावड़सी
जनमां रो भटक्यो
छेवट तो गांव नावड़सी
थांनै ठा कोनी
सैरां बिचाळै गांव रुळण लागर्या है
मायड़ रा मोती बरणा आंसू ढुळण लागर्या है
ईं खातर कविराज!
जठै-जठै बोलीज्यै राजस्थानी
बां जिग्यां री रुखाळ करो
आपरी संस्कृति री संभाळ करो
नींतर-
टाबरी तो जलमसी
पण चालैली फिलम-सी
रिस्ता-नाता मांयलो सुवाद मुकज्यैगो
सत, असत रै कबाड़ मांय लुकज्यैगो

अरे! आपरी कौम नैं संभाळो
अरे! आपरी भोम नैं संभाळो
हाथां मांय लेल्यो, दरांती अर फावड़ा
ताकि बेगा-सा आपां, खेतां नै नावड़ां
बठै बीज परेसान है
-हैरान है
पण कठै बा जबान है
जकी बंारै अंतर नैं उजास द्यै
कणैई तो-
इण कूड़ जगत मांय सत रो आभास द्यै
क्यूं अठै आय’र
आपां नैं ‘सत’ ई तो सोधणो है
पछै झूठ रो कूओ
क्यूं खोदणो है
पण आ बात कियां समझाऊं
लोगां नैं कियां बताऊं
कै बै कैद है
सुपना रा रंगम्हैल मांय
सुपनां रा कचकड़ा भेळा करता
मौज-मेळा करता
पाणी-पतासा खांवता
या मॉल मांय जांवता
बै सगळा-
आपरै ई घर में नकाबपोस होग्या
बै किताबां स्यूं घर सजावै है
बटाऊवां नैं लाइब्रेर्यां दिखावै है
पण बीं रै मांयलो ग्यान
उतारै कोनी घट मांय
घट!
जको सूनो है
निज भाखा रै सिणगार बिना
जियां कोई समाज हुवै
तीज अर त्यूंहार बिना
उण ढाळ जींवतो रैवणो है
या माँ री मौज मांय बैवणो है
ओ थंारै ऊपर निरभर है
थंारै हूंवता-
थांरी माँ बेघर है

म्हनैं म्हारो घर सूंपो
चाहै म्हैल हुवै या झूंपो
हर जिग्यां म्हैं साजी रैवूं
हरमेस तरोताजी रैवूं
रैवूं आपरै उल्लास में कहूकती कोयल ज्यूं
गाडियां मांय घूमूं आदमी रोयल ज्यूं
तकाऊं ममता स्यूं
धोरां-धोरां काची रेत नैं
फेरूं लगाल्यूं मांची
रात्यूं रुखाळूं खेत नैं

फेरूं मीरां रो घुंघरू बण जाऊं
फेरूं कबीर दांई साम्हीं तण जाऊं
फेरूं माटी
फेरूं कुम्हार होज्यै
के ठा कदै
म्हारो भी सुधार होज्यै
नींतर बिगाड़ मांय कमी कोनी
ऊपर स्यूं अेक भी आंख में नमी कोनी
रोज मरूं पल-पल, छिन-छिन
कटै नीं काट्यां अै रात-दिन
फेरूं भी काटणा है
आ कितरी बडी सजा है
पण रजा है जे सांवरै री
तो पीड़ के करै बावरै री
ओ जीवण तो पीड़ा रो परागो है
बिंजात पर सुहागो है
सो कीं समतल हूज्यै अठै
बडा-बडा खोज्यै अठै
म्हैं भी गुमसुदा हूँ
कोई म्हनैं म्हारै ठिकाणै पूगा द्यै
चोरटां रै गांव में हूँ
कोई म्हनैं थाणै पूगा द्यै
हाय!
म्हनैं म्हारो ठिकाणो याद है
पण पूगूं कियां, विसाद है!
-बडो भारी विसाद है!!