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रोज़ चिकचिक में सर खपायें क्या / 'अना' क़ासमी
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रोज़ चिकचिक में सर खपायें क्या
फैसला ठीक है निभायें क्या
चश्मेनम<ref>भीगी आँख </ref> का अजीब मौसम है
शाम,झीलें,शफ़क़<ref>लालिमा </ref>,घटायें क्या
बाल बिखरे हुये, ग़रीबां चाक
आ गयीं शहर में बलायें क्या
अश्क़ झूठे हैं,ग़म भी झूठा है
बज़्मेमातम में मुस्कुरायें क्या
हो चुका हो मज़ाक तो बोलो
अपने अब मुद्दआ पे आयें क्या
ख़ाक कर दें जला के महफ़िल को
तेरे बाजू में बैठ जायें क्या
झूठ पर झूठ कब तलक वाइज़<ref>मौलाना</ref>
झूठ बातों पे सर हिलायें क्या
शब्दार्थ
<references/>