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बिस्तरा है न चारपाई है / त्रिलोचन

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बिस्तरा है न चारपाई है,
जिन्दगी खूब हमने पायी है।

कल अंधेरे में जिसने सर काटा,
नाम मत लो हमारा भाई है।

ठोकरें दर-ब-दर की थी हम थे,
कम नहीं हमने मुँह की खाई है।

कब तलक तीर वे नहीं छूते,
अब इसी बात पर लड़ाई है।

आदमी जी रहा है मरने को
सबसे ऊपर यही सचाई है।

कच्चे ही हो अभी त्रिलोचन तुम
धुन कहाँ वह सँभल के आई है।