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मन में धीर धरो(माहिया) /रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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11
मिलने की मज़बूरी
पास बहुत मन के
फिर कैसी है दूरी
12
बेटी धड़कन मन की
दीपक मन्दिर का
खुशबू है आँगन की
13
आँसू सब पी लेंगे
जो दु:ख तेरे हैं
उनको ले जी लेंगे
14
मन की तुम मूरत हो
जितने रूप मिले
उनकी तुम सूरत हो
15
बदले हर मौसम से
ठेस नहीं पाई
जितनी तेरे गम से ।
16
बैरी तो दूर रहे
अपनों से पाए
जितने नासूर रहे ।
17
अपना किसको कहना
मज़बूरी में ही
दिन -रात पड़े रहना
18
बादल ये बरसेंगे ।
मन में धीर धरो
जीवन-पल हरसेंगे ।
19
तुझ-सा न मिला कोई
जिसको याद करें
अँखियाँ हर पल रोईं ।
20
अँधियारे आएँगे
हम तेरे पथ में
सूरज बन जाएँगे ।