सागर को रौंदने/ सुधा गुप्ता
मेरा हाइकु लेखन 1978-79-80 से आरम्भ हुआ था। यह विधा मन को ऐसी भाई कि अन्य सब कुछ पीछे छूटता गया और हाइकु के प्रति रुझान बढ़ता गया। दूसरी जापानी कविता-विधा ‘ताँका’ मैंने ई. सन् 2000 से लिखना आरम्भ की। यत्र-तत्र प्रकाशित हुए। 2004 में ‘बाबुना जो आएगी’ नामक हाइकु संग्रह प्रकाशित हुआ तो उसमें अपने 56 ताँका भी दे दिये। इसी वर्ष डॉ. शैल रस्तोगी के सम्पादन में ‘पंचपर्णा’ - 2 प्रकाशित हुआ जिसमें मेरे दो हाइकु-गीत और ग्यारह ताँका सम्मिलित किए गए थे। इस प्रकार हाइकु के साथ ‘ताँका’ का सफर भी चल निकला.... ‘सेदोका के विषय में प्राथमिक ज्ञान के बावजूद कभी विशेष आकर्षण का अनुभव नहीं हुआ, प्रयत्न का प्रश्न ही क्या??
‘सेदोका’ रचना का सम्पूर्ण श्रेय सम्माननीय भाई श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ को है। ई-मेल पर भेजे गए उनके एक सन्देश ने मुझे सेदोका रचने को प्रेरित किया। मैंने कुछ सेदोका लिख कर उन्हें भेजे जो ‘त्रिवेणी’ ब्लॉग पर प्रसारित हुए। फिर कुछ और..... कुछ और.... लिखे जाते रहे। ‘हिमांशु’ जी की लगन और सत्प्रयासों के फलस्वरूप उनकी स्थायी सम्पादनत्रयी- श्री हिमांशु, डॉ. भावना कुँअर एवं डॉ. हरदीप सन्धु के सम्पादन में ‘अलसाई चाँदनी’ नामक सेदोका संकलन (सेदोका का प्रथम संकलन) 2012 में प्रकाशित हुआ, जिसमें इक्कीस सेदोकाकार के 326 सेदोका थे। इस संकलन में मेरे भी तीस सेदोका स्थान पा गए! अच्छा लगा! फिर अन्यान्य कार्यों की ओर ध्यान बँट गया,किन्तु ‘बान’ छूटी नहीं। कभी वर्षा ॠतु, कभी शरद्, शीत, ग्रीष्म आदि विषयक सेदोका रचे जाते रहे.... सौभाग्य ही कहूँगी कि उनमें से कुछ ‘त्रिवेणी’ में आते भी रहे और साथियों की सकारात्मक टिप्पणी से उत्साह-वर्धन भी हुआ। अस्तु ये सारे सेदोका कहीं एक जगह पर नहीं थे ;मेरी बुरी आदत कि कहीं भी, किसी भी पन्ने / डायरी / नोट बुक पर लिख मारती हूँ, जिनको ढूँढ़ पाना भी मुश्किल होता है; फिर भी, अधिकांश एक लम्बी-सी लॉग-बुक में जाने कैसे और कब एकत्र हो गए थे।
एक दिन प्रसिद्ध कवयित्री/हाइकुकार डॉ. उर्मिला अग्रवाल मिलने चली आईं। तभी-तभी उनका प्रथम एकल सेदोका-संग्रह ‘बुलाता है कदम्ब’ प्रकाशित (2012) होकर आया था। उसकी एक प्रति मुझे उन्होंने भेंट की। उस दिन वार्ता सेदोका पर केन्द्रित हो गई। मेरी पढ़ने-लिखने की मेज़ पर पड़ी वह लाँग-बुक अनायास उनके हाथ लगी, जिसमें नब्बे से दो-चार अधिक सेदोका संगृहीत थे। पढ़ती रहीं। पढ़कर पाँच-सात मिनट के बाद बोलीं- ‘दीदी, इतने सारे सेदोका तो हैं, दस-पाँच और लिख लीजिये तो एक संग्रह तैयार हो जाएगा।’ उस समय तो बात आई-गई हो गई, किन्तु प़फोन पर सम्पर्वफ होते ही वह याद दिलाना नहीं भूलती थीं कि मुझे सेदोका-संग्रह तैयार करना ही है! बीच-बीच में हम दोनों कुछ अन्य कार्य में भी व्यस्त हो गए,किन्तु यह उनका मेरे प्रति निश्छल निःस्वार्थ प्रेम ही था कि उन्होंने बारम्बार स्मरण कराकर (लगभग कोंच-कोंचकर)मुझे कुछ और सेदोका रचने को विवश किया। लाचार, मैंने इधर-उधर बिखरे पड़े सेदोका एकत्र किये- बीस पच्चीस मिल भी गए। कुछ और रचे गए।
‘त्रिवेणी’ की ‘फरमाइश’ ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। ॠतु-अनुसार, सामाजिक समस्यानुसार ‘त्रिवेणी’ जब कोई शीर्षक देकर ‘सेदोका’ के लिए सामान्य सूचना भेजती, तब कुछ सेदोका रचे जाते.... जो कुछ है, जैसा बन पड़ा है, वह एकत्र करके प्रस्तुत करने की कोशिश की है। बस, इतना कहना है कि इस संग्रह के अस्तित्व में आने का सम्पूर्ण श्रेय सम्माननीय भाई हिमांशु जी और प्रिय डॉ उर्मिला अग्रवाल को है ;अतः अपनी यह कृति मैं स्नेह और सम्मान के साथ इन्हीं दोनों को समर्पित करती हूँ। संग्रह में कुल 207 सेदोका सात खण्डों में विभाजित हैं, प्रत्येक खण्ड का शीर्षक एवं प्रथम सेदोका भीतर का विषय स्पष्ट करने में पर्याप्त सक्षम है, अतः अलग से कुछ लिखना शब्दों का अपव्यय मानकर छोड़ दिया गया है।
शारदीय नवरात्र - सुधा गुप्ता
अक्टूबर 2013